सोमवार, 12 सितंबर 2016

हे ! राधा बावरी ...!

जय   जय   जय  हे..! किशन दिवानी ।
सज-धज  किधर  चल  दी  राधारानी ॥

मत  बताओ  तु म  हो   बहुत   सयानी ।
मैं   तो   जानत  हूँ  तेरे  मन  की बानी ॥

अब   आ   जाये   कुछ   भी   अड़चन ।
हो   के    रहेगा  मोहन  से    आलिंगन ॥

नयनाभिराम     राह     देखत - देखत ।
प्रेमप्यास   बड़ी  बन   गई  हो  चातक ॥

कैसी     पथरा    सी    गई    है  आँखें ।
देखो    करने   मनमोहन     के   दर्शन ॥

मृगतृष्णा   सी   हो    गयी   है   बावरी ।
कस्तूरी  मृग बन अब भटके  वन  वन ॥

राधेरानी ढ़ूंढ़ रही है  मोहन को वनवन ।
या करने चली है मनमोहन से  अनबन ॥

मोहन की चाहमें रे 'मनु ' तू न भटकना ।
तामन खोज ले मिल जायेंगे मनमोहना ॥

जैजै श्रीकृष्णा मन की मिटा दे सारी तृष्णा ॥

~~~~~~>मनीष गौतम 'मनु'
दिनांक - १२/०९/२०१६
शुभ संध्या मित्रों -
आने वाला 'पल' और 'कल' मंगलमयी हो ..

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