इस जहाँ में भला कौन गरीब हैं । यक़ीनन कोई नहीं । अपितु रात-दिन मेहनत करने की बजाय आलसी और "मक्कारीपन" करने से गरीबी आती है । बच्चे पैदा करना जायज़ समझा जाता है । लेकिन मेहनत करके खाना शायद उनके हद के बाहर हो जाता है । ऐसे मक्कार गरीब सड़कों मंदिरों, गली कूचों, चौराहे, यहाँ - वहाँ, कटोरा लिए अपने मासूम बच्चों के साथ रोटी के लिए हाथ फैलाये देखे जा सकते हैं । बच्चे युवा अवस्था तक यही करते रहे तो समझें एक और मक्कार गरीब का जन्म हो गया ।
शुभ संध्या मित्रों-
आने वाला 'पल' और 'कल' मंगलमय हो...
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