बुधवार, 27 जनवरी 2016

चिंतन - मनन

पढ़- लिख कर तैयार हो गया बंदा ।
अब हाथों चाहिए  कुछ काम धंधा ॥

एक नौजवान
झगड़ रहा है | अपनें माता-पिता से शायद उसके माता- पिता नें कोई अपराध किया हो वह कह रहा है | मुझे जन्म ही क्यों दिया ? अगर दिया तो नौजवाँ ही क्यों किया ? गलादबा देना था पैदा होते ही ?

वह नौजवान अपनी सारी मर्यादा लांध चिल्ला- चिल्ला कर गालीयाँ दे रहा है ! उसने अपनें कमरे से अहिंसा वादी गांधी जी की किताब, कार्ल मार्क्स की किताब, अर्थशास्त्र , समाज शास्त्र, राजनैतिक शास्त्र न जानें कितनें और शास्त्र की किताबें और प्रमाण पत्र, कुछ कागज जो अब उसके लिए निरर्थक हैं | बाहर निकाल लाया जो अब जलने जा रहे हैं |

तमतमाये चेहरे और लरजते हाथों से उसने आग लगा दी | दहकती लपटों में सारे सिद्धान्त जलते देख वह प्रसन्न है | जो इसे भद्र मनुष्य बनाने की शिक्षा देते हैं क्योंकि वो शिक्षा है | ऐसी शिक्षा जिसके बल पर वह अपना और अपनें परिवार के लिए दो वक्त की रोटी न ला सके | क्योंकि वह अब पढ़ा-लिखा बेरोजगार है |

अब प्रश्न कि पढ़ा-लिखा कर उसके माता-पिता ने आपराध किया है या आज की शिक्षा नीति को और प्रक्रियाओं को बदलनें की आवश्यकता है |

फंडा की - हमें ऐसी शिक्षा लेनी चाहीए जिसमें डिग्री भले न हो पर खुद का व्यवसाय करनें का ज्ञान हो |
~~~~~~>मनीष गौतम "मनु"
शुभ संध्या * मित्रों
आनें वाला "पल" और "कल" मंगलमयी हो...

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