करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।
भावार्थ :-बार -बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार बार -बार अभ्यास करने से मंद बुद्धि /मूर्ख व्यक्ति भी कई नई बातें सीख कर उनका जानकार हो जाता है।
मगर अफसोस मूर्ख तो मूर्ख कुछ समझदार भी देखनें में आया है मूर्खों जैसी हरकत कर ही लेते है ! मेरा मतलब बार- बार बतलाया जाता है और तो और लिखा भी होता है कि :- यहाँ पेशाब करना मना है | थूकना मना है | धुम्रपान करना मना है |फिर भी अंदेखी और गलती की जाती है |
इस बात का नजारा सार्वजनिक शौचालयो , अस्पताल की दिवारों , अन्य सामाजिक स्थलों में असानी से मजबूरी वस देखनें मिल ही जाता है ! रेल और अस्पताल के शौचालयों का नजारा अफशोस जनक होता है ! पान - तम्बाकु के पिक और गंदे- भद्दे चित्रों के साथ मोबाईल नम्बर भी लिखे होते हैं | इस तरह की हरकत बुरी मानसिकता का परिचायक है |
मिलता कुछ नहीं ! बल्कि हमारे मिशन :-
" स्वच्छ भारत- स्वथ्य भारत" के लिये बाघक हैं |
ये बाधा कभी बहाल हो न हो पर जब हम स्वयं उक्त स्थलों पर जायें उन मूर्खों की तरह हमारा व्यवहार न हो इस बात का हम ध्यान जरूर रखें |
आलेख ~~~~~~>मनीष गौतम "मनु"
शुभ* संध्या मित्रों
आनें वाला "पल" और "कल" मंगलमय हो …
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