समाज में हमारी आवश्यकता-
"सब्जी में नमक " की तरह होनी चाहीऐ |
जैसे - "सब्जी" में "नमक" हो कर भी, किसी
को दिखाई नहीं देता | केवल महसूस होता है |
यदि "सब्जी में नमक" न हो तो ,
सब उसकी याद करते है...!!
. ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
शुभ-संध्या मित्रों _
आनें वाला "पल" और "कल" मंगलमय हो..!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें