प्यार - प्यार - प्यार आखिर प्यार है क्या.?
जी | प्यार किसी रिश्ते जैसे -
माता- पिता/भाई-बहन /पति- पत्नी/ सभी प्रकार के नातेदार/रिश्तेदार /और इस कलयुग का सबसे प्रमुख रिश्ता "प्रेमी जोड़ों" के बिच "प्रेम |"
इन सभी रिश्तों के लिए | दिल/दिमाग में पैदा होने वाली ,"चाहत" की वह कशिश या अधिरता या व्याकुलता या खलबली मचा देनें वाली एक "संवेदना या भावना हैं |" जिसे हम प्यार कहतें है
"संवेदना या भावना" को रिश्तों के बिच में रिश्तों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से हम व्यक्त करतें हैं ..
जैसे -चरण स्पर्श कर /सर झुकाकर /सम्मान पूर्वक बोल कर /हँस कर / मंदममद मुस्कुराकर / स्पर्श कर/सिनें से लगाकर / गले से लगा कर / बाँहों में भर कर / लिपटकर / लिपटाकर /आँखों में आँखे डालकर / सहला कर / पुचकार कर/ चूमकर / सजसँवरकर / व्यवहार कर / नाच कर / गा कर / ललचाकर / ईतराकर. /मटककर /खुशी और गम के आँसू टपका कर/राम-रामई ले कर / नमन कर/ शुक्रिया अदा कर / मिठी-मिठी बातें कर आदि आदि ||
इन सभी प्यार के प्रकारों में --
चूमना/ पुचकारना /सहलाना/ मिठी- मिठी बातें करना / लिपटना/ लिपटाना/ ईतराना/मटकना/
सजना/सँवरना / बाँहों में भरना /बाँहों में समा जाना/ गले लगना/ गले लगाना/आंहें भरना आदि आदि !! ऐसा प्यार.. आज प्रेमि- जोड़ों के बिच थिरकता है मचलता है !
मगर अफसोस .... बाकी रिश्तों के बिच आज दिखावे /और बनावटी रूपि प्यार ने रिश्तों नातों के बिच दरार और दुरीयाँ बड़ा दी हैं ! जो इस कलयुग का एक दुर्भाग्य है.क्या मैने सच कहा .?
आलेख ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
शुभ*°* संध्या मित्रों....
आनें वाला "पल" और "कल" मंगलमय हो...!!
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