रविवार, 26 अप्रैल 2015

मैं नहीं .. लोग ये कहते..! बाजार बनकर बैठी है ...!!!


़         दोष न दो निर्दोश है ये तो
़  समाज के लिए जींती हैं और मरतीं है

़          नारी एक और रिश्ते अनेंक
रिश्तों के ताने-बानें में उलझती कभी सुलझती हैं

इसे लाचार कहें या इसकी आवश्कता .!
़               या /फिर/क्या....
मानव  हवस  की प्यास बुझानें बैठीं  है.??

अंश तो इनमें नारायणी का भी होता .!
़               या/फिर/क्या....
अपने धर्म को बद्नाम करने बैठी हैं .??

मानव समाज का है ये इक कालिख धंधा !
़               या/ फिर/क्या....
अपनें बच्चे के पोषण-आहार के लिए बैठी हैं.??

नारी गले में होती एक काले सूत की माला !
़               या/फिर/क्या....
माला नहीं तो अनाधिकार रूप से बैठीं हैं.??

नारी धूरी और रिश्तों की सेतु कहलाती !
़               या/फिर/क्या....
अपनें रिश्तों का  तिरस्कार करनें बैठी है.??

समाज ने अच्छा नाम दिया न काम दिया !
़               या/ फिर/क्या....
यहाँ बहिस्कृत और तिरस्कृत हो कर बैठी है.??

नारी अनुपम /रूप अनेंकम/ नाम अनेंकम ...
  
.   !!सामाज ने जो "बाजारु" नाम दिया!!
़                         //और//
.   !!बिकाऊ संबंध  बनानें  बाध्य किया!!
शायद उस नाम /ऱिश्तों को ही निभानें बैठीं हैं .?

ं   !!*!!नारी का हम  सब सम्मान करें !!*!!
!!*!!अच्छे  रिश्ते के अनुरूप व्यवहार करें !!*!!

़                      ~~~~> मनीष गौतम "मनु"

4 टिप्‍पणियां:

  1. नारी को बाजारू तो होना ही नहीं चाहिए !
    और यदि नारी बाजारू हो गयी तो पुरुषों को उस बाजार में जाना ही नहीं चाहिए।

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  2. आज के समय में भारत में इतना धन है कि रोटी के लिए कोई विवश नहीं है।
    किन्तु कुछ बालाओं को जाल में फंसाकर लोग बेच देते हैं । परिणाम कि उनको बाजार में बिठा दिया जाता है।
    किन्तु यदि युवतियाँ प्रलोभनो की लालची न हों तो संसार की कोई भी शक्ति उन्हें बाजारू नहीं बना सकती

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  3. आपने सामायिक एवं मूल विषय पर उचित प्रकाश डाला है !
    उत्तम विशलेषण !
    बहुतबहुत धन्यवाद

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