सोमवार, 13 अप्रैल 2015

मेरे सपनें

अक्सर तुम .... 
ये श्रृँगार लिए मेरे सपनों में  रोज "ज्वार -भाटे" की तरह आया करती हो, जैसे ही मैं आँखें खोलूं तुम मेरे अतीत में चली जाया करती हो ......

बस   फिर  रहतीं  हैं  मेरे  पास तुम्हारी मुस्कुराहटों की ओ......खनखनाहटें भरी यादों की यादें इसके बाद न कोई तुम्हारी आने की आहटें.... न.  तुमसे    मिलने      वाली चाहतें.......

इन्ही भावनाओ के लिए मैं तरस जाता हूँ पर क्या करुँ मै तुम्हें  रोज सपनो में ही "ज्वार -भाटे" की  तरह...... केवल   मुस्कुराते  हुए ही देख पाता हूँ | और अच्युत,पारिजात से बंधा तुम्हारे सपनो में मैं फिर खो जाता हूँ......  

शुभसंध्या मित्रों आने वाला  पल और कल मंगलमय हो
                               ~~~~~>मनीष गौतम "मनु"

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