शुक्रवार, 13 मार्च 2015

आज विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष.

~~~~~!*!*!* हे धरती-माता *!*!*! ~~~~~~~ ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

हे....!  धरती-माता....! 

अब यहाँ कुछ.....अच्छा नहीँ दिखता....!!! 

हरियाली तेरी गोद से मिट रही , 

बगियन काटों से पट रही....! 

अब न सौन्दर्य है\न सुरभि है\न सौरभता......

बस दरख्तो का उजड़ापन ही दिखता....!

हे....धरती-माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं  दिखता....!!!

रिश्तों की डोरी टूट रही ,

संबंधता कोषों  दुर हुई....!

 न भाव है\न प्रेम है\न नाता...

बस रिश्तों का बेगानापन ही दिखता....!

हे.... धरती माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं दिखता....!!!

अब मासुमियत भी हवस का शिकार हुई, 

मानव ने जनावर की जगह लई...! 

अब न इन्सानियत है\न ईमान है\न सत् कर्म ...

बस हैवानियत का टाँडव दिखता....! 

हे....धरती,-माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं  दिखता....!!!

दुर्जन सज्जन बन गये,

सज्जन काल-कपोलित हुऐ...! 

अब न नीति है \न नियम है \ न नीति विधाता....

बस निज स्वार्थीपन ही दिखता....! 

हे.... धरती-माता...!

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं  दिखता....!!!

असभ्यता, सभ्यता पर हावी हुई,

सभ्यसंस्कृति नित-नित मिट रही....! 

अब न कपड़े है/न आँचल है/न ममता....

बस बच्चा बोतल से दुध पिते दिखता....!

हे.... धरती-माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं  दिखता....!!!

धर्म के स्थल सूने पड़े,

 मधुशालाऐ भीड़ से पटी रहे.... 

अब न आस्ता है\न पूजा है \न धर्मपरायणता....

बस अधर्मियों का टॉडव दिखता....!

हे....धरती-माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं  दिखता....!!!

देश-प्रेम की भावना मिट रही,

मानव सभ्यता लुट रही....!

अब न देश-प्रेम है\न सरफरोसी है\न कोई देशभक्त....

बस मानव एक रुपये में बिकते दिखता....!

हे.... धरती-माता....! 

अब यहाँ कुछ अच्छा नहीं दिखता....!!!

~~~~~~> मनीष कुमार गौतम 'मनु' —
१३/०३/२०१५

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