बुधवार, 4 जून 2014

҉‿↗⁀҉ शोभा ҉‿↗⁀҉

'शोभा' सभा में है या सभा में है शोभा ...
सुरज की आभा में  शोभा...
झर-झर झरते झरनों में शोभा...
प्रकृति की हर छटा मेें  शोभा ...
बगीयन के हर गुल में शोभा ...
हर दिन हर पल. जब दिल में होती 'शोभा'...
बढ़ जाती है मेरे 'मन' की  शोभा ...              शोभा बिना सब कुछ  लगे 'अशोभा ...
'शोभा' से सुशोभित हो जाता  जब मन , तब बढ़ जाती है मेरे 'तन' की 'शोभा'...
मेरे मन की कविता में कितनी है 'शोभा'...
जरा जल्दी से मुझे सुझाना हे मेरी 'शोभा'....|
~~~~> मनीष कुमार गौतम " मनु"

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